छोटे छोटे सवाल –५
इस बार बात पाठक के बराबर बैठे हुए हिन्दी की लेक्चररशिप के ही दूसरे उम्मीदवार मुरारीमोहन माथुर ने पकड़ ली, बोला, "दरअसल आप नहीं समझे होंगे, क्योंकि पाठकजी ने जरा बारीक बात कह दी। दरअसल उनका मंशा यह था कि सत्यव्रतजी की 'क्वालिफिकेशन्स' की बजाय अगर आप अपनी 'क्वालिफिकेशन्स' पर गौर फरमाएँ तो शायद आपको अपनी 'लक ट्राई' करने की भी जरूरत महसूस न हो।
माथुर का इशारा राजेश्वर की सप्लीमेंटरी की तरफ़ था। मगर ये 'लक ट्राई' का खटका ऐसा हुआ कि सारे उम्मीदवार एकबारगी हँस दिए। सिर्फ सत्यव्रत नहीं हँसा। उसके शान्त, पवित्र-बौद्ध-मुख पर एक करुणा-सी उभर आई। उसे शायद लगा कि ठाकुर पर अत्याचार हो गया। और वह उसके पक्ष में कुछ कहने की सोचे कि तभी राजेश्वर खुद ही बोल पड़ा, "आप आखिर कहना क्या चाहते हैं?" माथुर ने फिर उसी का वाक्य दोहरा दिया, "दरअसल आपने नाहक तकलीफ़ की। आपकी 'क्वालिफिकेशन्स' कुछ सूट नहीं करती हैं।" हँसी का एक फ़व्वारा तेजी से कमरे में फैल गया।
राजेश्वर ने कुछ कहा, पर शोर में उसकी बात अनसुनी रह गई और वह हँसी के शान्त होने की प्रतीक्षा करने लगा। लोग हँस-हँसकर दुहरे-तिहरे हुए जा रहे थे। सत्यव्रत के मुख पर करुणा और उभर आई थी। वह हँसी बन्द होने की प्रतीक्षा में क्षमायाचना जैसा भाव लिए राजेश्वर की ओर निहारे जा रहा था। र
ाजेश्वर मन का गुबार मुँह में लिए बैठा था। एक भाव तेजी से उसके मन में दौड़ रहा था कि ये सब दयनीय हैं। इन हँसनेवालों में से अधिकांश इंटरव्यू खत्म होते ही पिटे हुए सिपाही की तरह कमरे से बाहर निकलेंगे और तब वह उनकी ओर जिस अकड़ से देखेगा यह विजेता की अकड़ होगी। मगर अब...अब तो उसकी हेठी हुई। बड़ी हेठी हुई।...और इस विचार का अनुसरण एक तीखे से वाक्य ने किया जिसके उच्चरित होने से पूर्व ही अचानक मास्टर उत्तमचन्द्र बराबर वाले प्रिंसिपल के कमरे से यहाँ आ गए।